- मशहूर आर्किटेक्ट हफीज कॉन्ट्रैक्टर ने कहा- शहरी हद तय करने का कानून बने, खाद्यान्न सुरक्षा के लिए जमीन जरूरी
- उन्होंने कहा- कोरोना के दौरान और उसके खत्म होने के बाद चार-पांच महीने के लिए परेशानी आ सकती है
धर्मेंद सिंह भदौरिया
May 09, 2020, 09:07 AM IST
नई दिल्ली. दुबई की गगनचुंबी इमारत 23 मरीना, साइबर सिटी गुड़गांव समेत दुनिया की कई मशहूर इमारतें डिजाइन करने वाले आर्किटेक्ट और पद्मभूषण से सम्मानित हफीज कॉन्ट्रैक्टर का मानना है कि कोरोना संक्रमण काल के बाद अब वक्त आ गया है कि हम खाद्यान्न सुरक्षा के लिए जमीन बचाएं, वर्टिकल रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट बनाने की सोचें। इससे जमीन की बर्बादी नहीं होगी, लागत में कमी आएगी और पर्यावरण भी सुधरेगा। उनसे बातचीत के संपादित अंश…
सवाल: कोरोना के बाद अब देश-दुनिया में क्या नए बदलाव देखने को मिलेंगे?
– कोरोनावायरस स्थायी रूप से रहेगा, ऐसा नहीं है। कई बार हम भविष्य के बारे में अधिक सोच लेते हैं। कोरोना के दौरान और उसके खत्म होने के बाद चार-पांच महीने के लिए परेशानी आ सकती है। जब तक वैक्सीन नहीं है, तब तक इसका डर रहेगा।
सवाल: घरों के बाहर और अंदर किस तरह की तकनीक अब डिजाइन के साथ जरूरी होगी?
– अभी शहरों में घर एक-दूसरे से चिपके हुए होते हैं। कुछ मंजिलों की बिल्डिंग होती है। नई-नई सोसायटी भी 12-13 मंजिल की होती है और शहर फैलते जाते हैं। अब तय करना होगा कि एक हद के बाद शहर का विस्तार नहीं होगा। हमें कानून में बदलाव करना होगा, जिससे वह ज्यादा मंजिलों की इमारत बनाने की मंजूरी दें। इससे जिस क्षेत्र में एक हजार लोग रहते थे वहां दो गुना लोग रहने लगेंगे। अब ग्राउंड और 50 मंजिल की इमारतें बनाने की जरूरत है। यूरोप और अमेरिका की तर्ज पर भारत में शहर नहीं बसाने चाहिए। फूड सिक्योरिटी के लिए जमीन जरूरी है। इसे हम बढ़ा नहीं सकते।
सवाल: रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट के स्वरूप में भविष्य में किस तरह का बदलाव आएगा?
– अभी एयरपोर्ट के लिए 5-10 हजार एकड़ जमीन लेने की क्या जरूरत है? एविएशन इंडस्ट्री को वर्टिकल एयरपोर्ट के बारे में भी सोचना चाहिए। हवाई पट्टी भी वर्टिकल होनी चाहिए। इससे ज्यादा जमीन की जरूरत नहीं पड़ेगी। हमें कुछ अलग तरह से सोचना पड़ेगा। वहीं, रेलवे स्टेशन पर ही बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनाने की बात हो रही है, जिसकी लागत बहुत अधिक आती है। बिल्डिंग स्टेशन के बजाए रेलवे की खाली जमीन पर दूर बननी चाहिए जिससे लागत कम होगी। अभी यात्री बहुत दूर गाड़ी पार्क करते हैं, कुली करते हैं और फिर ब्रिज पार कर गाड़ी तक पहुंचते हैं (गाड़ी अगर बीच के प्लेटफार्म पर आती है तो)।
मेरा मानना है कि इसके बजाय रेलवे लाइन के ऊपर ही पूरी बड़ी छत बने और यात्री अपनी कार के साथ प्लेटफार्म नंबर के हिसाब से पहुंचे और कार खड़ी करें। फिर एस्क्लेटर की सहायता से कोच तक पहुंचे। हमने देश के 19 प्लेटफॉर्म का फ्री में डिजाइन बनाने के लिए रेलवे को ऑफर किया है।
सवाल: आपने कहा कि अमेरिका, यूरोप की तर्ज पर भारत में शहर नहीं बसाने चाहिए, तो क्या तरीका होना चाहिए?
– नया शहर बसाने की प्लानिंग करते समय हम लंबी-चौड़ी जमीन चिन्हित कर लेते हैं। इसमें ज्यादातर हिस्सा खेती की जमीन का होता है। फिर लंबे-चौड़े रास्ते बनेंगे। फिर बिल्डर चार या पांच मंजिल में शहर बसाएंगे और इस तरह पूरी जमीन चली जाती है। हजारों साल से इसी तर्ज पर शहर बसाए जा रहे हैं। इसकी जगह सौ-सौ एकड़ की लंबाई-चौड़ाई में 50-55 मंजिल वाले कई टावर बनें। जरूरत के मुताबिक सौ-सौ एकड़ भूमि दो बार भी ली जा सकती है।
बाकी की भूमि का उपयोग खेती करने या जंगल के रूप में ही रखें। सरकार इलेक्ट्रिक कार की बात करती है लेकिन इसी तर्ज पर शहर भी बसा सकते हैं। इसके साथ ही सौ-सौ एकड़ के जो दो टुकड़ों पर शहर बसे उसके बीच में अंडर ग्राउंड इलेक्ट्रिक ट्रेन, ट्रॉम या फिर कन्वेयर बेल्ट चलाना चाहिए। शहर के अंदर इलेक्ट्रिक कार-स्कूटर चलाने का नियम बनाएं। साथ ही लोग फ्लैट में आने के लिए लिफ्ट का प्रयोग करेंगे जो इलेक्ट्रिसिटी से चलती है ना कि पेट्रोल-डीजल से। अगर ऐसा होगा तो कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी रुकेगा साथ ही ग्लोबल वार्मिंग का असर भी नहीं होगा। इससे घर और जल स्तर की समस्या खत्म हो जाएगी।
सवाल: वर्क फ्रॉम होम से घरों में क्या बदलाव आएगा?
– ग्रीन बिल्डिंग्स और बनेंगी। थोड़े समय के लिए तकनीकी बदलाव हो सकता है। लिविंग रूम के साथ ही वर्किंग रूम भी होगा, लेकिन ऐसा कुछ लोग ही कर सकते हैं। ऐसों के बारे में भी सोचिए जहां एक ही कमरे में कई लोग रहते हैं। वर्क फ्रॉम होम स्थाई रूप से नहीं चल सकता है। वर्क फ्रॉम होम में वह प्रोडक्टिविटी नहीं आ सकती, जो ऑफिस जाने में है।
सवाल: भारतीय तरीके से शहर नहीं बने तो पछताना पड़ेगा?
– स्मार्ट लिविंग तभी होगी जब पहले सिटी स्मार्ट बने। स्मार्ट सिटी का अर्थ है जहां पर्यावरण, वन, खेती, जल स्तर, ग्लोबल वार्मिंग आदि की सुरक्षा और चिंता की जाए। आर्किटेक्ट को कहा जाता है कि शहर में इतने जॉब होने चाहिए। जो विदेशी कंपनी डिजाइन तैयार करती हैं, उनको देश के बारे में बेहतर जानकारी नहीं होती। वे 200 मीटर चौड़ी मेन रोड बनाते हैं। इसमें जमीन बर्बाद होती है। भारतीय तौर-तरीकों से शहर नहीं बनेंगे तो पछताना पड़ेगा।
Source link