पत्रकार और लेखक 13 मांओं की आपबीती; वे कहती हैं- मां बनने के बाद आपकी दुनिया एक छोटे शहर जैसी हो जाती है


  • मां बनने के बाद सकारात्मक बदलाव आते हैं, अपने बचपन के अभावों से बच्चों के जीवन की तुलना न करें   
  • अमेरिकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने 9 मई 1914 को पहली बार मदर-डे के मौके पर छुट्टी की घोषणा की थी

दैनिक भास्कर

May 10, 2020, 03:10 PM IST

वॉशिंगटन. अमेरिका के 28वें राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने 9 मई 1914 को पहली बार देश में नेशनल मदर-डे पर छुट्टी की घोषणा की थी। इस दौरान वुड्रो ने कहा था कि अवकाश ने देश की माओं के प्रति प्यार और सम्मान दिखाने का मौका दिया। खास बात है कि 1908 में मदर्स डे का विचार देने वाली एना जार्विस के अपने बच्चे नहीं थे। उन्होंने इसकी शुरुआत मां के बलिदानों का सम्मान करने के लिए की थी। पहली बार आधिकारिक तौर पर मदर्स डे ग्राफ्टन स्थित चर्च में मनाया गया था।

हालांकि पुराने वक्त से तुलना की जाए तो आधुनिक दौर में मां की भूमिका में भी कई बदलाव आए हैं। आज 112 साल बाद 20वीं सदी की महिलाएं काफी बदल गई हैं। इस मदर-डे पर ऐसी ही 13 महिलाएं जो पेशे से पत्रकार, साहित्यकार और लेखक हैं। उन्होंने प्रेग्नेंसी या मां बनने के बाद अपने अंदर आए इन बदलावों के बारे में चर्चा की। वे अपने संकल्प, आशंका, गर्व, महत्वाकांक्षा, फोकस, सहानुभूति, चिंता, स्वभाव, गुस्सा और खुशी आदि के बारे में बता रही हैं कि उनकी जिंदगी पहले से अब कितनी बदल चुकी है। पढ़ें, इन महिलाओं की कहानी, उन्हीं की जुबानी… 

  • जरूरी चीजों को हां कहना – केसी विल्सन

मैं हमेशा हां कहने वाली हूं। मुझे इस बात पर गर्व है कि, मैं हां कहने वाली जगह से आती हूं। मैंने अपने पूरे जीवन में केवल हां कहा है। मेरे लिए न कहना कठिन है, यह मेरे स्वभाव में नहीं है। मुझे लोगों को दुखी करना बुरा लगता है। 

मेरे दो छोटे बेटे हुए और अचानक से मैं काम, मेरी देस्ती जैसी अपनी पसंद की चीजें नहीं कर पा रही थी। यह साफ हो गया कि, मुझे तय करना होगा कि, क्या जरूरी है। इसका मतलब वही चीजें करना जो मुझे खुशी देती हैं। मैंने मातृत्व से मिलने वाले पुरस्कार से परे हटकर सोचा। 

एक धीमी आवाज जिसे हम हमेशा से जानते हैं, वह बच्चों के आने से बढ़ जाती है। यह हमारी मौत की आवाज है। हमें हमारी जरूरी चीजों को हां कहने के लिए न कहना होगा। 

  • हारने से डरने लगी- निकोल हैना जोन्स

मेरा जन्म ऐसे परिवार में हुआ जहां पिता शराबी थे, बहुत ज्यादा पैसे नहीं थे और न ही परिवार के संपर्क। लेकिन एक चीज हमेशा से थी आत्मविश्वास। मैं बहुत लोगों पर भरोसा नहीं करती, लेकिन अपने आप पर मेरा पूरा यकीन है। मैं अपने जीवन में कई चीजों से डरी हूं, लेकिन इसमें हार शामिल नहीं हैं। बेटी होने के बाद यह बदलाव आया है। अपने बचपन के कारण मैंने काफी समय यह सोचने में निकाला है कि पैरेंट के तौर पर क्या नहीं करूंगी। मैंने अपने बच्चे के लिए ऐसा घर बनाने का फैसला कर लिया था, जैसा मैंने अपने लिए सोचा था। 

मैंने अपने जीवन में आत्मविश्वास पर जैसा कंट्रोल बनाया था, वो संभालना मुश्किल लग रहा था। क्योंकि मैं अब एक और इंसान को बड़ा कर रही हूं, जो मुझे और गलतियों को देख रहा है। अब मुझे अपने माता-पिता से भी हमदर्दी होने लगी है। मुझे डर है कि जिंदगी के सबसे बड़े इस काम में मैं फेल हो जाऊंगी। इसलिए जब मेरी बेटी बहुत छोटी थी, मैंने उसके लिए जर्नल लिखना शुरू किए। उसे बताया कि, मैं उसे कितना प्यार करती हूं, वो मेरे लिए क्या है, उसने कैसे मेरा जीवन बदल दिया 

मुझे उम्मीद है कि जब वो बड़ी हो जाएगी तो यह जर्नल उसे मेरी गलतियों के लिए माफ करने में मदद करेंगे। एक बच्चे के तौर पर मुझे नहीं लगता था कि उम्मीद जरूरी है, लेकिन अब मुझे लगता है कि एक यही चीज मेरे पास बची है।

  • हर चीज परफेक्ट हो जरूरी नहीं- मीगन ओ कॉनल

जब मेरा पहला बच्चा हुआ तो मेरा मुख्य चिंता का कारण था कि सबसे बेहतर क्या होगा। इस बात से मतलब नहीं था कि बेहतर मेरे बच्चे, समाज, परिवार या खुद में से किसके लिए है। प्रेग्नेंसी और ब्रेस्टफीडिंग से लेकर सोने के इंतजाम तक मुझे सब कुछ परफेक्ट चाहिए था। मुझे अगर पीडियाट्रीशियन, योगा टीचर या किसी की भी हामी मिल जाती थी तो मुझे पता लग जाता था कि मैं असफल नहीं हुई हूं।

मैंने अपने लिए बेहतर देखने की ताकत खो दी थी। मुझे नहीं पता था कि मुझे क्या चाहिए। मैं अपने तय किए मानकों पर काम न करने पर खुद को प्रताड़ित करने लगी। बच्चे के जन्म के बाद जब मैं पहली थैरेपी के लिए गई तो मैंने अपने बारे में सोचना शुरू किया। मैंने पता लगाने की कोशिश की कि मुझे क्या चाहिए, क्या जरूरी है और मैं इसकी मांग कैसे करूं। साथ ही इसका सामना कैसे करूं। मैंने अपने मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेना और बातचीत करना सीखा। क्योंकि इसके अलावा मेरा परिवार नहीं चल पाता। 

कई लोग बच्चा होने के पहले ही इसे सुलझा लेते हैं या इसे सुलझाने के लिए पैरेंट बनने की जरूरत नहीं है, लेकिन मेरे लिए मदरहु़ड में इसे जरूरी कर दिया। चार साल बाद जब मेरा दूसरे बच्चा हुआ तो मैं थैरेपिस्ट के पास गई। उसने मुझे कठिन लेकिन विकल्प चुनने में मदद की। 

  • अपने बचपन को नए नजरिए से देखा- जैनिफर वीनर

संडे की सुबह थी, मैंने अपनी बेटी को हिब्रु स्कूल से लिया और पूछा क्या वह भूखी है? जब उसने बताया कि उसे भूख लगी है तो मैंने उसे मॉल चलने के लिए कहा। उसने जवाब दिया कि क्या जाना जरूरी है। मैंने उससे यह कहते हुए रुक गई कि क्या तुम्हें पता है कि मैं कितनी खुश होती, अगर मेरी मां मुझे शॉपिंग के लिए ले जाती। मेरी मां को शॉपिंग से नफरत थी और उनके चार बच्चे थे। हमारे कपड़े थोक में लिए जाते थे। 

जब मेरी बच्चियां हुईं तो मैंने सोचा यह मौका है, उन्हें सबकुछ देने का जो मुझे चाहिए था। मैं उन्हें दुनिया देना चाहती हूं। मेरी बेटियां कपड़े नहीं चाहतीं, वे मॉल नहीं जाना चाहतीं। जबकि यह सब मुझे बहुत पसंद था। मां बनने के बाद मैंने जाना कि कम उम्र की औरत की खुशी का कोई सांचा नहीं होता। उन्हें क्या पसंद है यह पता करना मेरी जिम्मेदारी है।

  • अब मैं वर्तमान में रह सकती हूं- जे कर्टनी सुलिवन

मैंने कई बार वर्तमान में रहने की कला को सीखने की कोशिश की, लेकिन असफल रही। लेकिन जब मेरा बेटा हुआ तो बिना कोशिश किए ही मैं वर्तमान में रहने लगी। सालों पहले एक नॉवेल पर रिसर्च के दौरान मैं अलग रहकर ध्यान कर रहीं नन से मिली। उनके किसी बड़े उद्देश्य के लिए लगातार चल रहे साधारण कामों ने मेरे बेटे के शुरुआती दिनों की याद दिलाई। जहां कोई भी बाहरी चिंता या शिकायत नहीं पहुंच सकती। 

अचानक मुझे पैसों, दोस्तों और देश के बारे में चिंता होने लगी, जैसे दुनिया मुझे वापस बुला रही है। मेरा बेटा करीब 3 साल और बेटी 18 महीनों की है। दोनों के बीच दिन कुश्ती की तरह गुजरता है। लेकिन, मैं अब भी वर्तमान में रह सकती हूं, जब अपने फोन को एक तरफ रखकर बच्चों के साथ होती हूं। 

  • अपने शरीर के लिए नई प्रशंसा खोजी- कार्ला ब्रूस एडिंग्स

मैंने शायद ही कभी अपने शरीर को पसंद किया हो। मुझे हमेशा इसमें कोई कमी नजर आती थी। करीब पांच साल पहले जब मैं गर्भवती हुई तो सब बदल गया। जन्म देना नर्क का आभास कराता है और यह तब तक नामुमकिन लगता है, जब तक आप इसे कर नहीं लेते। इस अनुभव ने मुझे अपनी शक्ति का सम्मान दिया है। मैं उस जीत को कभी नहीं भूल सकती, जब मैंने अपने बच्चे को अपने हाथों में उठाया। 

  • पहले से ज्यादा जल्दी मदद स्वीकार कर लेती हूं- नताशिया डियोन

प्रेग्नेंट होने से पहले किसी से मदद मांगना बुरा लगता था। लेकिन मातृत्व मुझे सिखा रहा है। इस भूमिका में छोटा महसूस होता है, लेकिन ठीक है। मैं किसी की मदद कर सकती हूं और मदद मांग भी सकती हूं। किसी समझदार और भरोसेमंद व्यक्ति के साथ अपना बोझ साझा करना चतुराई है। मां होने का मतलब अकेले होना नहीं है। मातृत्व मददगारों हाथों की एक कम्युनिटी है, जहां कई बार हमें ही पहुंचना पड़ता है। मदद मांगना कमजोर दिखने की निशानी नहीं है। यह एकाकी अनोखी बहादुरी है, जो केवल विनम्रता और समर्पण से आ सकता है।

  • मैंने अपने एंबिशन पर फिर फोकस किया- एंबर टेंब्लिन

दूसरी महिलाओं की तरह मनोरंजन जगत में मुझे भी अपनी उम्मीदों को संभालने की सलाह दी गई। एक्ट्रेस के तौर पर मेरा करियर 10 साल की उम्र में शुरू हुआ और करीब दो दशक तक चला। लेकिन मां बनने के बाद करियर के साथ मेरे रिश्ते बदल गए। जब मैं अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोचती हूं तो मुझे लगता है कि इसे भी अपनी उम्मीदों को संभालने के लिए कहा जाएगा। यह बात न केवल मुझे डरा देती थी, बल्कि मुझे गुस्सा आता था। 

एंटरटेनमेंट बिजनेस में मेरे जैसी महिलाओं के लिए बाधाएं हैं। जब मैं इसमें से मुश्किल से निकलती अपनी बेटी के बारे में सोचा तो अपना दृष्टिकोण बदलना पड़ा। मैंने खुद को यह कहना बंद कर दिया कि यही एक रास्ता है। खुद को अपने बच्चे में देखकर मैंने एक आर्टिस्ट, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और राइटर के तौर पर बिना माफी मांगे लड़ना सीखा है। 

  • मातृत्व में एक लय मिली- लिन स्टीगर स्ट्रांग

मैं अभी डरी हुईं हूं, जो आधी रात में जागकर महामारी ज्ञान पढ़ती है। मेरे बच्चे हालांकि हर समय घर में हैं, जैसे वे छोटे बच्चे होने के बाद से नहीं थे। उन्हें अभी भी हमेशा की तरह खाना चाहिए। जीवन की अधिकांश कठिन चीजों की तरह पैरेंट के तौर पर यह मेरी पसंदीदा है। पैरेंट बनने के बाद जो मेरे लिए बदला वह थी जानकारी, जो बताती है कि जीवन की अनिश्चितताओं के बीच, पैरेंटिंग जिद से भरी है। 

  • हर मिलने वाले में एक बच्चा नजर आता है- जोआना गोडार्ड

बच्चे होने से पहले, मैं सब कुछ पर्सनली ले लेती थी। मुझे दुख होता था कि ये लोग मुझसे इतना रूखा व्यवहार क्यों करते हैं। उन्हें मुझ में क्या नहीं पसंद, मुझमें क्या गलत है। लेकिन अब मेरे बच्चे हैं और मैं जान गईं हूं कि ज्यादातर लोगों के मूड का आपसे कोई लेना देना नहीं है। बच्चे गड़बड़ करते हैं, क्योंकि या तो उन्हें भूख लगी है, वे थक गए हैं या बोर हो रहे हैं। वे ऐसा आपके कारण नहीं करते।

यही बात बड़ों पर भी लागू होती है। लोग अपनी परेशान दुनिया में डूबे हुए हैं। वे या तो भूखे हैं या डरे हुए हैं। इस वजह से वे ऐसा करते हैं। अब जब मैं सड़क पर होती हूं तो लोगों का चेहरा देखती हूं और सोचती हूं कितनी उलझी हुई जिंदगी जी रहे हैं। यह देखकर आप अजनबियों और उनके मूड से प्यार करेंगे। आखिरकार हर कोई किसी न किसी का बच्चा है।

  • अब मैं कम बेचैन रहती हूं- रॉबिन टनी

मैं हमेशा से बहुत घबराती थी। मुझे याद है मैं हर चीज को खराब कर सकती थी। लेकिन 2015 में जब में प्रेग्नेंट हुई तो मैंने जीवन में पहली बार शांति महसूस की। मुझे नहीं पता इसका कोई और भी कारण था क्या। अब भी परेशानी है, लेकिन अधिकांश वक्त मैं ठीक हूं। मैं अब मानिसक तौर पर विकसित हुई हूं। मेरे अंदर कुछ आया है और मुझे पता है कि इसका कारण मेरे बच्चे हैं।

  • मैं फ्रैंड्ली हो गई हूं- जैंसी डन

मैं लोगों से बचती थी, लेकिन जब मैं प्रेग्नेंट हुई तो अजनबियों ने मुझसे बात करने लगे। बेटी होने के बाद ऐसे मौके बढ़ गए और मैं इनकी आदी हो गई। मुझे सभी से बात करना पसंद आने लगा और क्यों न करती, जब कोई मुझसे यह कहे कि आपकी बेटी क्यूट है। मुझे अनगिनत परिवारों के व्यवहार से मुझे अच्छा लगा। जब आपका बच्चा हो जाता है तो आपकी दुनिया एक छोटा शहर हो जाती है। 

जल्द ही मुझे इन बातचीत की जरूरत पड़ने लगी और मैं खुद ही पहल करने लगी। अब मेरी दोस्ती इतनी बढ़ गई है कि मेरे पति शिकायत करते हैं कि हम उस स्टोर नहीं जाएंगे, क्योंकि तुम वहां क्लर्क से बहुत देर तक बात करती हो।

  • ठहराव आ गया- डानी मैक्लैन

करीब 20 साल तक मुझे जहां भी जाना था मैं गई। लेकिन अब मेरी एक बेटी है। हम हमारे होमटाउन में रहते हैं, जो उसका होमटाउन है। वे चार वर्षों से मेरे साथ है और मेरी 20-30 उम्र वाली बेचैनी खत्म हो गई है। मैं जहां भी रही वे जगह मुझे बहुत प्यारी है। लेकिन जो आजादी पहले मुक्त हुआ करती थी, अब अस्थिरता की तरह महसूस होती है कि मैं एक पैरेंट हूं। 



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