केरल में हथिनी की मौत ने इंसानियत को शर्मसार किया; जयपुर के गांव में एक वक्त खाना खाकर हाथियों को पाल रहे हैं महावत
- जयपुर में है देश का एकमात्र हाथी गांव, देशी-विदेशी पर्यटकों के बीच मशहूर है यह गांव
- यहां कुल 103 हाथी और उनके 51 महावतों के परिवार एक साथ हाथी गांव में रहते हैं
विष्णु शर्मा
Jun 07, 2020, 07:29 PM IST
जयपुर. केरल के मलप्पुरम में गर्भवती हथिनी को फल में पटाखे रखकर खिलाकर हत्या करने की घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। देश के कोने-कोने में वन्यजीव प्रेमियों के मन में इस घटना के बाद आक्रोश है। वहीं, मल्लपुरम से करीब 2400 किलोमीटर दूर राजस्थान की राजधानी जयपुर में देश का एकमात्र और पहला ऐसा हाथी गांव है, जहां लॉकडाउन की वजह से पिछले 80 दिनों से हाथी मालिकों और महावतों के परिवारों के 800 से ज्यादा सदस्यों की रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
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तमाम मुसीबत और संकट के बावजूद इस गांव के लोग एक वक्त भूखे रहकर अपने हाथियों को पाल रहे हैं। उन्हें भूखा नहीं रहने दे रहे हैं। इसके पीछे वजह है कि हाथी इनके लिए जानवर नहीं बल्कि परिवार का हिस्सा है। हाथी गांव में रहने वाले बच्चे इन हाथियों के बीच पले-बढ़े हैं। ऐसे में इन बच्चों के लिए ये हाथी दोस्त जैसे हैं। यहां रहकर बच्चे इनके साथ खेलते हैं। मस्ती करते हैं। कभी सूंड पकड़कर चढ़ जाते हैं तो कभी पैर या दांत पकड़ कर झूलते हैं। यही हाल इनके मालिकों और महावतों का है, जो इन हाथियों को बच्चों जैसा मानते हैं।
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गांव में हाथियों व महावतों की रोजमर्रा की जिंदगी देखने आते हैं पर्यटक
यहां के लोग बताते हैं कि यह देश का पहला और एकमात्र हाथी गांव है, जिसे 2010 में जयपुर-दिल्ली हाइवे पर 120 बीघा में बसाया गया था। देश विदेश के सैलानी यहां हाथियों और उनके महावतों की रोजमर्रा की जिंदगी को करीब से देखने आते रहे हैं। यहां मुख्यगेट पर एंट्री में हाथी गांव का बोर्ड लगा हुआ है।
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गांव में कुल 103 हाथी, 63 हाथियों के लिए बने हैं बाड़े
हाथी गांव कल्याण समिति के अध्यक्ष बल्लू खान बताते हैं कि यहां हाथियों के रहने के लिए 63 शेड होम बने हैं। यह करीब 20 फीट से ऊंचाई चौड़ाई है। एक ब्लॉक में तीन हाथियों के लिए शेड होते हैं। इसके पास इनके महावतों और परिवार के ठहरने के लिए कमरे बने हैं। बच्चों के खेलने के लिए लॉन है। यहां हाथियों की देखरेख और उपचार के लिए वेटरनरी डॉक्टर की व्यवस्था भी है। इसके अलावा हाथियों के नहाने के लिए तीन बड़े तालाब हैं। कैंपस में ही यहां रहने वाले लोगों के लिए स्कूल व अस्पताल भी है। हाथियों का सामान व खाना रखने के लिए स्टोर रूम भी बना हुआ है।
‘केरल की घटना से मां घबरा गई और फोन पर बात करते वक्त भावुक हो गई’
केरल में गर्भवती हथिनी की निर्ममता से हुई हत्या की घटना को याद करते हुए बल्लू ने कहा, ‘उनकी बुजुर्ग मां को मीडिया के जरिए यह समाचार मिला। तब वे घबरा गई। उस वक्त मैं घर से बाहर था। तब मेरी मां ने मुझे फोन कर केरल की घटना के बारे में बताया। वे उस वक्त काफी भावुक और परेशान थी। उन्होंने कहा कि एक बार हाथी गांव में अपने हाथियों को भी संभाल लो। कहीं यहां ऐसा कोई बदमाश न आ जाए, जो अपने हाथियों के साथ ऐसा कर दें।’
बल्लू कहते हैं कि खाने की तलाश में शहर में निकली एक हथिनी को निर्ममता से हत्या से बड़ा पाप नहीं हो सकता। यहां हमने बचपन से जब से होश संभाला है तब से हाथियों को देखा है। हम खुद भूखे रह जांएगे। लेकिन इन बेजुबान हाथियों को भूखा नहीं रहने देंगे। आज इनकी वजह से हाथी मालिकों व महावतों के 800 से ज्यादा परिवार के सदस्यों का पेट पल रहा है।
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बल्लू के मुताबिक, एक हाथी की डाइट पर करीब 3500 रुपए रोजाना का खर्च आता है। लेकिन अभी हाथी कल्याण समिति द्वारा 600 रुपए रोजाना के हिसाब से प्रत्येक महावत को दिए जा रहे हैं। ऐसे में वे लोग इसी राशि में अपना और हाथी का पेट पालते हैं। लेकिन उसे कभी अपने बच्चों की तरह भूखा नहीं रहने देते हैं।
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हाथी मालिक बल्लू खान के मुताबिक, केरल में घायल हथिनी तीन दिन तक पानी में तड़पती रही। वह शांत रही, लेकिन किसी को पता तक नहीं चला। हमारा तो हाथियों से इतना लगाव है कि उनके पेट दर्द हो या फिर कोई और शारीरिक समस्या, उनके शरीर की हलचल को देखकर ही सब समझ आ जाता है। इससे हम तुरंत डॉक्टर को बुला लेते हैं।
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