बच्चे का तनाव सदमा न बन जाए, इसके लिए उनसे बात करें; वीडियो चैट, फोन या चिट्ठी के जरिए दोस्तों और परिवार से जोड़े रखें


  • बच्चों में कोरोनावायरस के तनाव का इस्तेमाल विकास के अवसर के रूप में कर सकते हैं
  • परिजन बच्चे की मदद कर सकते हैं, ताकि तनाव उसके स्वास्थ्य के लिए जहर न साबित हो

स्टैसी स्टीनबर्ग

May 09, 2020, 06:12 AM IST

वॉशिंगटन. लॉकडाउन का असर बच्चों की मानसिक स्थिति पर भी पड़ सकता है। बच्चे इन दिनों कई ऐसी प्रतिक्रियाएं दे सकते हैं, जिनकी माता-पिता उम्मीद नहीं करते। विशेषज्ञों का मानना है कि परिजन को समझना चाहिए कि ऐसी प्रतिक्रिया सामान्य है। हमें बच्चों को इस तनाव से उबारने में उनकी मदद करनी चाहिए, अन्यथा यह सदमे में बदल सकता है। 
 
बच्चे का व्यवहार सामान्य से हटकर हो, तो समझ जाएं कि वह बर्दाश्त की सीमा से बाहर आ गया है। इसे इस नजरिये से देखें कि यह इस मुश्किल समय में क्यों बदला। यह संकेत है कि वह भीतर ही भीतर संघर्ष कर रहा है। फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजिस्ट जॉय गैब्रिएल कहते हैं, ‘आप सुनिश्चित नहीं हैं तो उसकी काउंसिलिंग करवाएं।’ 

विपत्ति का प्रभाव समझें
जो बच्चा पहले भी हिंसा या फिर नजरअंदाज किए जाने वाले अनुभवों से गुजर चुका है, वह इस स्थिति में अलग-थलग महसूस करेगा। डॉ बर्क हैरिस कहते हैं तनाव का बच्चे के मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य और व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। उसे इस तरह ढालने की जरूरत है कि वह जरूरतों का आकलन करे। तनावपूर्ण स्थितियों का विकास के अवसरों में तब्दील करे। 

तनाव घटाने के उपाय ढूंढ़ें
यह सोचें कि हम बच्चे की किस तरह मदद कर सकते हैं। डॉ. बर्क हैरिस अनुशंसा करते हैं कि बच्चे को तनाव के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए उससे बात कर सकते हैं। बच्चे को दोस्तों और परिवार से जोड़कर कर रखें। वीडियो चैट, फोन कॉल या चिट्ठी लिखकर यह किया जा सकता है। एकरूप रूटीन से बचें और बच्चे से कुछ क्रिएटिव काम करवाएं।



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