सरकार कर रही है ट्रेन-बसों के दावे, पर मजदूर अब भी पैदल ही हैं; पंजाब ने तो ऐसा मंजर बंटवारे के वक्त देखा था


  • बठिंडा के 84 साल के पूर्व कांग्रेसी नेता जीतलाल पहलवान ने कहा-1947 के बंटवारे का मंजर एक बार फिर नजर आ रहा है, देखकर आंखें नम हैं
  • अकेले बठिंडा जिले में ही रिक्शा-रेहड़ी चालक समेत लगभग 12000 प्रवासी मजदूर बेकार; ट्रेन में न बैठाने से नाराज पैदल ही निकल पड़े

दैनिक भास्कर

May 15, 2020, 12:47 PM IST

बठिंडा. रोजगार छिन गया है। भूख के मारे पेट अंदर धंस गया है। सरकार के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। सरकार दावे तो कर रही है कि मजदूरों को ट्रेन से घर भेजने की व्यवस्था की जा रही है। लेकिन, शहरों के हाइवे पर पैदल चलते बेबस मजदूर इन दावों की हकीकत को बयां कर रहे हैं। चाहे पंजाब से दिल्ली-यूपी की तरफ आने वाले हाइवे हो या फिर महाराष्ट्र से यूपी-बिहार की ओर आने वाले रास्ते। नंगे पांव, खाली पेट, परिवार का बोझ उठाए मजदूरों का रेला ही नजर आ रहा है। तपती धूप में यह पैदल ही सैकड़ों किमी का सफर करते हुए घर की तरफ चला जा रहा है। कुछ राज्यों की दर्द भरी ऐसी ही तस्वीरें, जो सरकारी दावों की हकीकत को बयां करती है।

पंजाब: प्रदेश में करीब 11 लाख लोगों ने घर वापसी रजिस्ट्रेशन करा रखा है। 

जागो साहब: ‘आधे बिस्तर’ यानी बैग पर पर ये बच्चा नहीं, सिस्टम सोया है…

यह तस्वीर चंडीगढ़ की है।
यूपी के प्रतापगढ़ के रहने वाले राजकुमार यहां मजदूरी करते थे। पत्नी और तीन बच्चों का ट्रेन से गांव ले जाने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया। गुरुवार की 2 बजे वाली ट्रेन में नंबर आ गया। भीड़ ज्यादा होती है, इसलिए सुबह 4 बजे ही पहुंच गए। यहां जमीन पर ही बैठकर कई घंटे इंतजार करना पड़ा। लेकिन बच्चे तो बच्चे होते हैं, एक तो रात को सोए नहीं, ऊपर से कई घंटों की तपस्या। इसलिए राजकुमार के बेटे ने बैग को ही ‘बिस्तर’ बनाया। थोड़ी देर सो गया ‘मजबूरी की नींद’ में अपनी थकान मिटाने के लिए। 

बेबसी: मींह (बारिश) नहीं मेहर बरसा परमात्मा।

मींह (बारिश) नहीं मेहर बरसा परमात्मा। यह तस्वीर जालंधर की है। यहां श्रमिक दिनभर कतार में लगकर ट्रेन की टिकट के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। गुरुवार को बारिश में भी सैकड़ों मजदूर यहां के बल्ले-बल्ले फार्म के बाहर कतार में खड़े रहे। 

आंखें भीगीं…आंचल भीगा…भीगा राज दुलारा

यह तस्वीर जालंधर की है। गांव लौटने के लिए जद्दोजहद कर रहे हजारों श्रमिकों का मौसम भी इम्तिहान ले रहा है। गुरुवार को तेज बारिश के बावजूद बच्चों को गोद में उठाए श्रमिक लाइनों से नहीं हटे, क्योंकि उन्हें डर था कि घंटों खड़े रहने के बाद इधर-उधर हुए तो उनकी जगह कोई दूसरा ले लेगा।

दर्द की इंतेहा देखनी है…हमारी आंखें में देखो।

ये मासूम बच्चे…मजबूर माएं…सबकी आंखों में एक ही सवाल है- घर कब पहुंचेंगे।
इन मासूमों की आंखें देखकर भी सरकार को शर्म नहीं आती।
जालंधर में मजदूर ट्रेनों की टिकट और रजिस्ट्रेशन के इंतजार में इतना थक गए कि ट्रॉली को ही बिछौना बना लिया। ये थके हैं लेकिन टूटे नहीं, अपनी मंजिल तक पहुंचेंगे। ये दोआबा-माझा के कई इलाकों से पैदल पहुंचे हैं।

राजस्थान: 15 दिन के दुधमुंहे बच्चे के साथ, 1000 किलोमीटर का सफर

यह तस्वीर राजस्थान के कोटा की है। मध्यप्रदेश के भिंड के रहने वाले भजनलाल सूरत में मजदूरी करते थे। लॉकडाउन में काम मिलना बंद हो गया। यह पत्नी और 15 दिन के दुधमुंहे बच्चे के साथ बाइक से ही घर के लिए निकल पड़े। रास्ते में बाइक स्लिप हो गई। गनीमत रही कि बच्चे को चोट नहीं लगी। भजनलाल ने बताया कि रास्ते में किसी पेड़ के नीचे रुककर कुछ देर आराम करके आगे बढ़ जाते हैं।

 अलवर: ठेले पर गृहस्थी

यह तस्वीर अलवर की है। मध्यप्रदेश के छतरपुर की रहने वाली रामकुमारी मजदूरी करने के लिए राजस्थान आई थी। लेकिन लॉकडाउन हो गया। बच्चों को भूख से तड़पता देख अब यह पैदल ही अपने गांव के लिए निकल पड़ी है। गृहस्थी के नाम पर जो सामान था उसे ठेले पर रख लिया।

श्रीगंगानगर: 7 माह के बच्चे को मच्छरों ने इतना काटा, पैरों पर जख्म हो गए

यह तस्वीर श्रीगंगानगर की है। सात माह का बच्चा प्रकाशदीप अपने माता-पिता के साथ साधुवाली के सरकारी स्कूल में रह रहा है। घर जाने को अभी कोई साधन नहीं है। इसलिए यहां शरण ली। लेकिन स्कूल में पार्क और पास में गंदे पानी का तलाब होने के कारण मच्छर इतने अधिक हैं कि बच्चा रातभर सो नहीं पाता। इतना ही नहीं, मच्छरों ने उसे इतना काटा है कि उसके पैरों व हाथों पर जख्म हो गए हैं। कहीं-कहीं तो सूजन भी आ गई है।



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *